Traditional Marketing vs Digital Marketing

परम्परागत व्यवसाय और डिजिटल व्यवसाय में अंतर

आज से 500 वर्ष पूर्व के युग में देखें तो इतिहास बताता है कि उस जमाने में सामान के बदले सामान का हस्तांतरण होता था। अर्थात उदाहरण स्वरूप, अगर आपके पास गेहूँ काफी मात्रा में पैदावार हो गया और आपको चावल की आवश्यकता है तो जिसके पास अधिक मात्रा में चावल है तो उसके पास जाना पड़ता था, और बात तय किया जाता था कि 3किलो गेहूँ के बदले 2 किलो चावल मिलेगा, तब अगर आप को 10 किलो चावल की जरूरत है तो आपको 10 किलो चावल के बदले 15 किलो गेहूँ उस व्यक्ति को देने पड़ते थे। इसी तरह अगर गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त करने जाना है तो गुरु जी को शिक्षा के बदले अनाज ही देना पड़ता था। 

            अगर तबियत खराब हो गई और वैध जी से इलाज करवानी पड़े तो वैध जी को दवा और फीस के बदले में अनाज ही देनी होती थी। क्यों कि उस समय मुद्रा का प्रचलन नहीं था, सिर्फ खेती ही जीविका का साधन था। बहुत से लोग जिनके पास खेती के लिए जमीन भी नहीं थे, वे लोग दूसरों के खेत में मजदूरी करते थे, बदले में उन्हें अनाज ही मिलता था। और उसी अनाज को अपनी आवश्यकता के अनुसार अदल बदली करके अपनी जीविका चलाना पड़ता था। जो कि काफी कठिन कार्य था। क्योंकि जिस भी वस्तु की आवश्यकता होती थी उसको ढूँढना पड़ता था जिसमें काफी कठिनाई होती थी। समय और मेहनत भी काफी लगानी पड़ती थी। 

मुद्रा की शुरुआत

 मुद्रा की शुरुआत:- जब मुद्रा की शुरुआत हुई तो कठिनाई थोड़ी कम हुई। मुद्रा के लेन – देन से आवश्यक वस्तु थोड़ी आसानी से उपलब्ध होने के कारण सहुलियत होने लगी। शिक्षा के बदले मुद्रा, चिकित्सा के बदले मुद्रा, सामान के बदले मुद्रा का प्रचलन शुरू हो गया, फिर साप्ताहिक बाजार लगने लगे। जहाँ लोग जा कर अपनी आवश्यकता की वस्तु खरीदने लगे। लेकिन वस्तु की मात्रा की उपलब्धता के अनुसार उसकी कीमत तय की जाने लगी। उदाहरण के तौर पर किसी भी कारण से मौसम की अनुकूलता या यातायात में कठिनाई के कारण किसी वस्तु के बाजार में नहीं पहुँच सकने या आवश्यकता से कम पहुँचने के कारण उनकी कीमत अन्य दिनों के वनिष्पत् बढ़ जाते थे। जिसके कारण लोगों को वस्तु के कीमत का अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा था।To know more information

व्यवसाय में सुधार

 व्यवसाय में सुधार :- (Traditional Marketing vs Digital Marketing) समय के अनुसार परंपरागत व्यवसाय में सुधार हुआ, और दुकानों का प्रचलन शुरु हुआ। जहाँ लोग जाकर अपनी आवश्यकता की वस्तु आसानी से खरीद लेते थे। लेकिन परेशानी अभी भी थी, क्यों कि अलग अलग सामान के लिए अलग – अलग दुकानों पर जाना पड़ता था। जैसे- चावल, दाल, गेहूँ, आटा, मिर्च मसाला आदि के लिए एक दुकान, सब्जी के लिए दूसरा दुकान, फल लेना हो तो तीसरा दुकान, बर्तन लेना हो तो चौथा दुकान, जूता चप्पल लेना हो तो पाँचवा दुकान। और ये सभी दुकानें अलग अलग दूरी पर होते थे, जिसके कारण समय और मेहनत दोनों की बर्बादी होती थी, और सामानों की किमत में भी अंतर होता था, क्योंकि उत्पाद कर्ता, या निर्माण कर्ता से सामान डीलर, होल सेलर से होते हुए खुदा दुकानदारों तक पहुँचते थे, और दुकानदार से आप जैसे ग्राहक तक पहुँचते थे, मुनाफे में सबकी हिस्सेदारी होती थी। अर्थात उत्पाद कर्ता को सामान उत्पाद करने में जो खर्चे आते थे उसपर कुछ मुनाफा रखकर उत्पाद कर्ता डीलर को माल भेजते थी, यातायात के खर्चे जोड़कर और अपना कुछ मुनाफा रखकर डीलर अपने होल सेलर को माल भेजते थे। अब होल सेलर उस सामान पर यातायात के खर्चे जोड़कर और अपना कुछ मुनाफा रख कर दुकानदार को सामान भेजते थे, दुकानदार उस सामान पर अपने खर्चे और यातायात के खर्चे जोड़कर ग्राहक को देते थे। अब अगर किसी कारण वश उत्पाद कर्ता को उस सामान के बनाने वाला रॉ मेटेरियल की उपलब्धता में कभी कमी आने के कारण या नहीं उपलब्ध होने के कारण उत्पादन में कठिनाई आई तो सामान का उत्पादन या तो अस्थाई तौर पर का या नहीं होने की स्थिति में सामान की कीमत में अचानक वृद्धि से भी ग्राहक को परेशानी का सामना करना पड़ता था, क्योंकि एक तो उत्पादन करने वालो की संख्या बहुत ही कम थी, जिसके कारण उनका एकाधिकार हो जाता था, और उक्त सामान की कीमत भी उनकी मर्जी से तय किया जाता था। Ref:- To know more

ग्राहक और दुकानदार के संबंध

 ग्राहक और दुकानदार के संबंध :- लेकिन साथ ही साथ ग्राहक और दुकादारों के संबंध भी अच्छे होने लगे और इसका फ़ायदा ग्राहक को तो हो ही रहा था, दुकानदार भी व्यवसाय को बढ़ाने के लालच में सामानों की खरीदारी पर छुट देना, उधार देना शुरू कर दिया। जो दुकानदार जितना उधार देता या छुट देता उसके पास उतने ही ग्राहक आने लगे और उधारी प्रथा की शुरुआत हो गई। ये उधारी ज्यादातर मुहल्लों की दुकानों में ज्यादा होती थी, जिसका नतीजा हुआ कि छोटे बड़े सभी दुकान दारों को काफी मुश्किल होने लगा। कई छोटे दुकादार को अपनी दुकानें बंद करनी पड़ी। 

दुकानों का बड़ा रूप शॉपिंग मॉल

 दुकानों का बड़ा रूप शॉपिंग मॉल:- तब धीरे धीरे शोपिंग मॉल प्रचलन में आने लगा। इसकी शुरुआत महानगरों से हुई, फिर शहरों में, जहाँ एक छत के नीचे ही अधिकतर सामान मिलने लगा। लेकिन शुरुआत में ये दुकानों के बड़े रूप में ही आये, जैसे की रेडिमेड कपड़ो का एक बड़ा दुकान, जिसमें बच्चे, बड़े, पुरुष, महिला, सभी के कपड़े एक ही दुकान में मिलने लगे कीमत फिक्स होने के कारण लोगों को सहुलियत होने लगी, धीरे धीरे कपड़ो के साथ बर्तन, जूते, चप्पल, और अन्य जरूरत के सामान भी एक ही शॉपिंग मॉल मे उपलब्ध होने लगे, धीरे धीरे समय बदला और बिजली के सामान जैसे कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, इलेक्ट्रिक आइरॉन, समस्त बिजली उपकरण, लकड़ी के सामान जैसे पलंग, सोफा, टेबल, कुर्सी आदि सामान भी एक ही छत के नीचे कई प्रकार की सेवाएं जैसे वैधानिक सलाह, आयकर सलाह आदि। शिक्षा के क्षेत्र में सभी तरह की शिक्षा वर्ग 1 से 10 तक फिर इंटर इंटर मिडिएट, ग्रेजुेएशन और इसके आगे उच्च शिक्षा की व्यवस्था एक ही छत के नीचे मिलने लगा, चिकित्सा के संबंध में देखा जाय तो एक ही अस्पताल में सभी रोगों का इलाज होने से लोगों को काफी सुविधा मिलने लगा। यातायात के क्षेत्र में भी बहुत सुधार हुआ। जहाँ लोगों को कई किलोमीटर पैदल सफर करना पड़ता था। लोगों को आसानी से वाहन उपलब्ध होने से काफी परेशानी कम हुई। सभी व्यवसाय की भी स्थिति में सुधार हुआ। 

            लेकिन भारत में पिछले 20-25 वर्षों के अंदर तेजी से बदलाव आया जो यूरोपियन देशों में 50 वर्ष पहले ही शुरू था। कंप्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट के आने के बाद डिजिटल मार्केटिंग प्रचलन में आये, जिसके तहत किसी भी ग्राहक को सामान, सेवा, शिक्षा लेने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है। सारी सुविधा घर बैठे ही मिलने लगी। आइये जानते हैं ये डिजिटल मार्केटिंग क्या है? और कैसे काम करता है? 

            डिजिटल मार्केटिंग, जैसा नाम से ही प्रतीत होता है, ऐसा मार्केट जो डिजिट यानी अंको के उपर निर्भर है और अंको को विलकुल अलग तरीके और साधनों के द्वारा उपयोग किया जाता है। Ref:- For More details

डिजिटल शब्द की उत्पत्ति

 डिजिटल शब्द की उत्पत्ति-  हाथ पैर की उंगलियों को लैटिन भाषा में डिजिटल कहा जाता है, यहीं से डिजिटल शब्द की उत्पत्ति हुई है। चूकिं उँगलियों का उपयोग अक्सर गिनती करने के लिए किया जाता है, इसलिए अंको से सूचना देने वाला, अंकीय, अंको में दर्शाने वाला, अंकदर्शी। कंप्यूटर विज्ञान में ध्वनि रिकॉर्डिंग या सूचना संग्रहण के लिए 1 और 0 अंक का प्रयोग करने वाली इलेक्ट्रॉनिक पद्धति को डिजिटल कहा जाता है। 

           डिजिटल शब्द एक विशेषण है, एक ऐसा शब्द है जो संज्ञा (उँगली) की विशेषता बतलाती है। विशेषण संज्ञा के अर्थ को और सटीक बनाते हैं। 

           शिक्षा को देखें तो जहाँ 50-100 साल पहले गुरुकुल विद्यालय जाकर ही शिक्षा ग्रहण करना पड़ता था। इसके लिए पैदल भारी भरकम किताबों का बोझ लेकर जाना, विद्यालय की फीस इत्यादि की समस्या का सामना करना पड़ता था, लेकिन धीरे – धीरे किताबों का बोझ समाप्त हो गया, घर बैठे कंप्यूटर, मोबाइल, लैपटॉप पर ही पढ़ाई होने लगी, घर बैठे शिक्षक भी एक साथ हजारों विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाने लगे, जबकि विद्यालय में एक शिक्षक एक कक्षा में एक साथ अधिक से अधिक 25-50 छात्रों को ही पढ़ा पाते थे। वहाँ एक साथ हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाने लगे। जिससे समय, मेहनत और पैसे की काफी बचत होने लगी और असीमित पैसे भी आने लगे। ई – मेल, youtube, जूम, facebook, ट्विटर, लिंकडिन, इंस्टाग्राम आदि के आ जाने के बाद जैसे सब कुछ बदल गया। ये सब कैसे हुआ? आइये ये जानते हैं। 

            इन सब में सबसे बड़ा योगदान मोबाइल फोन, इंटरनेट, लैपटॉप, कंप्यूटर का रहा है। ऐसा नहीं है कि इतना बड़ा बदलाव होने का मतलब पहले का सिस्टम के खराब था, वो भी सिस्टम अच्छा था, और आज का सिस्टम भी अच्छा है। सिर्फ समय की मांग के कारण ही चीजे बदली और इतना बड़ा बदलाव आया। आज के समय से लगभग दो ढ़ाई वर्ष पहले अचानक कोरोना आया और सभी शिक्षण संस्थान अस्थाई तौर पर एका एक बंद कर दिये गए। तब शिक्षक online क्लास लेना शुरू किए, जिसमें जूम पर एक निश्चित समय पर विद्यार्थी भी अपने अपने मोबाइल से क्लास जॉइन करते थे, और एक शिक्षक एक साथ कई अपने विद्यार्थियों को पढ़ा देते थे। इसके लिए सिर्फ एक एंड्रॉयड मोबाइल फोन या लैपटॉप तथा इंटरनेट की जरूरत होती है। जो आज के समय में लगभग सभी लोगों के पास उपलब्ध है। अधिकतर या यूं कहे तो लगभग सारे स्कूल, कॉलेज, कोचिंग संस्थान डिजिटल हो गए, इसका सबसे बड़ा लाभ लोगों के ख़र्चे और मेहनत में काफी कटौती हुई, लोगों को कहीं आने जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी, यातायात की जरूरत नही होती थी, सारा काम घर से ही होने लगे। Ref:- For more details read this blog

सोशल मिडिया की शुरुआत

सोशल मिडिया की शुरुआत:- अन्य व्यवसाय में भी काफी परिवर्तन हुए, सामान लाने के लिए दुकानों का चक्कर लगाने के स्थान पर घर बैठे सामान मँगवाने की व्यव्स्था मोबाइल कंप्यूटर इंटरनेट के माध्यम से होने लगा, सोशल मिडिया जैसे youtube, फेसबुक, ट्विटर, लिंकडिन, इंस्टाग्राम आदि जगहों पर सामान आसानी से लोग बेचने और खरीदने लगे। अमेजोन, फ्लिपकार्ट, मिशों आदि पर कपड़े और जरूरत के सामान, बिग बास्केट पर सब्जी, फल इत्यादि। मेडिमिक्स टाटा 1mg आदि जगहों पर दवाइयाँ आदि वाजिब कीमत, गुणवत्ता वाला सामान घर बैठे मिलने लगे। इन सबके लिए आपके पास सिर्फ एक एंड्रॉयड फोन और इंटरनेट की आवश्यकता होती है। बस एक ऐप डाउन लोड करने की जरूरत है। इससे समय, मेहनत और पैसे की भी बचत होने लगी, क्योंकि सामान उत्पाद कर्ता से ग्राहक को सीधा मिलना शुरु हो गया। 

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Conclusion

  Conclusion:-

          अधिकतर ऑफिस चाहे सरकारी हों या गैर सरकारी सभी कार्यालयों में कंप्यूटर उपयोग में आने लगे काम को और भी आसान तरीके से किया जाने लगा, अधिकतर काम घर से होने लगे और बहुत सारे खर्चो में कमी दिखने लगी, affliate मार्केटिंग, फ्री लानसिंग का प्रचलन बढ़ा और आय भी असीमित, साथ ही youtube से भी ब्लॉग राइटिंग् कंटेंट राइटिंग् आदि से लोगों की काफी अच्छी कमाई होने लगी, चौतरफा रोजगार के अवसर मिलने लगे, और दिनों दिन online का माँग बढ़ने से देश की आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगी, और लोग सुखी और समृध् बनाने लगे। 

           डिजिटल मार्कीटिंग को विस्तृत रूप से समझने के लिए और डिजिटल मार्केटिंग से कई तरीके से पैसे कमाने के उपाय जानने के लिए साई मानव कल्याण ट्रस्ट द्वारा संचालित SMKT DIGITAL ACADEMY से नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करके संपर्क करे। 

 धन्यवाद। 

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